Sunday, 30 May 2021

असुर जातीय शासन व्यवस्था|Asur Administration System|असुर जनजाति सामान्य ज्ञान|Asur General Knowledge

                      परिचय

असुर समुदाय झारखंड की सबसे प्राचीन जनजाति है। इसका प्रवेश झारखंड में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ होते हुए हुआ है। भारत में सबसे ज्यादा असुर जनसंख्या झारखंड में है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी इसकी जनसंख्या पाईजाती है।इसका  झारखंड  मे आगमन 600BC से 4000 BC माना गया है।इसका जिक्र ऋग्वेद, अरण्यक, उपनिषद और महाभारत में मिलता है। असुरों को हड़प्पा सभ्यता का प्रतिष्ठापक़ माना जाता है। असुरों की उपस्थिति का प्रमाण ताम्र, कांस्य और लौह युग में भी मिलता है।

            असुर के विभिन्न नाम 

1. पूर्वदेवा
2. रामायण में असुर की चर्चा कोल नाम से मिलती है।
3 ऋग्वेद में इसका जिक्र  अनासह:, अव्रत, मुर्ध: वाच और सुदृढ़़ शब्दो से किया गया है।अनासह: का अर्थ चपटी नाक वाले, अव्रत का अर्थ विभिन्न आचरण करने वाले, मुर्ध: वाच मतलब अस्पष्ट बोलने वाले, सुदृढ़ मतलब लौह दुर्ग निवासी।
4. ऋग्वेद में असुर को लिंगपुजक भी कहा गया है।


              असुर जनजाति का वर्गीकरण 

झारखंड में यह आदिम जनजाति की श्रेणी में आता है। यह प्रोटो ऑस्ट्रालॉयड जनजातीय परिवार के अन्तर्गत आते है। इसकी भाषा आसुरी है जो विलुप्त होने के कगार में है। आसुरी भाषा मुंडारी (एशियाटिक या एस्ट्रो-एसियाटि) भाषा परिवार के अन्तर्गत आता है। आसुरी भाषा को मालेय भी कहा जाता है। यह एक अल्पसंख्यक जनजाति है जिसकी जनसंख्य 2011 के जनगणना के आधार पर मात्र 22459 है जो झारखंड की जनजातीय जनसंख्या का मात्र 0.26% है।
असुर जनजाति के तीन उपवर्ग है:-
1. बीर असुर
2. बिरजिया असुर
3. अगरिया असुर

                      असुर का निवास स्थान
असुर समुदाय का मुख्य जमाव झारखंड के पाट क्षेत्र में है। ये गुमला, लोहरदग्गा, लातेहार और पलामू में पाया जाता है। झारखंड में मुंडा के आगमन से पहले ही असुर झारखंड में बसे हुए थे। जब मुंडाओ का आगमन 600BC में हुआ तो असुर और मुंडा में संघर्ष हुए जिसमे मूंडाओ की जीत हुई और असुरों को राँची क्षेत्र छोड़कर पाट क्षेत्र में शरण लेना पड़ा। मुंडा के लोककथा 'सोसो बोंगा' में इसका जिक्र मिलता है।

असुर की जीविका - असुर समुदाय का परंपरागत पेशा लौहकर्म है। लोहा गलाने और उससे अस्त्र-शस्त्र  और कृषि उपकरण बनाने में बहुत निपुण होते है। इस व्यवसाय की उन्नति के लिए असुर समुदाय कुटसी पर्व मनाते है। वर्तमान में ये लोग कृषि और पशुपालन में भी जुड़ गए।

                                खानपान 

 ये सुबह के खाने को लोलो घोटू जोमकु और शाम के खाने को बियारी घोटु जोमकु कहते है। चावल से बने शराब को बोथा या झरनूई कहते है। इसके जीवन में धूम्रपान का बहुत महत्त्व है साल के पत्ते में तंबाकू लपेटकर "पिक्का" बनाकर धूम्रपान करते है।


                      असुर की समाजिक व्यवस्था 

असुर समाज पितृसत्तात्मक होता है। असुर समाज में संयुक्त और एकल दोनो तरह के परिवार पाया जाता है।असुर समाज में चाममबंदी संस्कार पाया जाता है जिसमें शिशु की सुरक्षा के लिए चमड़े का धागा पहनाया जाता है और यह धागा विवाह के उपरांत ही खुलता है।असुर विवाह में वधुमूल्य देने की प्रथा है, वधुमुल्य को 'डाली टाका' कहा जाता है। 'ईदी-मी (ईदी-ताई-मा)'विवाह का प्रचलन असुर समुदाय में पाया जाता है। इस प्रकार के विवाह में लड़का लड़की स्वेच्छा से बिना विवाह संस्कार पुरा किये हुये पति-पत्नी की तरह साथ रह सकता है मगर कभी न कभी विवाह संस्कार से गुजरना पड़ता है। विधवा विवाह एवं तलाक का भी प्रचलन है। इस जनजाति के युवागृह को गीतीओडा कहते है

                               धार्मिक जीवन 
असुर के प्रधान देवता सिंहबोंगा है। इसके आलावे असुर मरांग बूरू, धरती माता, पाट दरहा, दुआरी और तुसहुसीद देवता की पूजा करते है। असुर गांव के पुजारी को बैगा कहते है और बैगा के सहायक को सुआरी कहा जाता है। कुटसी, कथडेली और पाटदेवता की पूजा असुरों में प्रमुख है।इसके अलावा ये  सोहराई सरहुल, नवाखानी और फगुआ भी मनाते है।

                       असुर जनजाति के गोत्र 

असुर समुदाय के गोत्र को पारिस कहा जाता है। असुर में 12 पारिस पाया जाता है।
1. बेंग
2. केरकेट्टा
3.ओप्पो
4. बरबा
5. इंदावर
6. बड़का 
7.आइंद
8. धान
9. बघना
10. ऊलू
11. खुसर
12. ठीठइयो
                           असुर पंचायत व्यवस्था
                 Asur Administrative System
असुर पंचायत व्यवस्था के प्रमुख महतो होता है। इसके अलावा बैगा, गोडायत भी पंचायत व्यवस्था का पदाधिकारी होता है। गोडायत का काम सूचना का प्रसार पूरे गांव में करना।पंचायत अखड़ा में होती है। सबसे बड़ी सजा सामाजिक बहिष्कार है। गांव के सभी बालिग पुरुष पंचायत के हिस्सा होते है। जैसे ही आपत्तिजनक बातें होती है गोडायत पूरे समाज को निर्धारित समय पर इकट्ठा करता है। गांव के बुजुर्गो और पदाधिकारियों द्वारा दोनो पक्षों की बात सुनके, और गवाहों के बात के आधार पर विचार विमर्श करके तुरंत फैसला सुनाया जाता है। पंचायत का फैसला न मानने वालों को गांव छोड़ना पड़ता है। समगोत्रीय विवाह बिलकुल निषिद्ध है।समगोत्रिय विवाह पे सामाजिक बहिष्कार की सजा मिलती है।





                        असुर पुरातात्विक स्थल
                  Asur Archeological Sites
खूँटी जिले के तजना नदी के किनारे विकसित असुर सभ्यता का पता चला।इस नदी के किनारे बहुत से स्थल पता चला है की यहां पर कभी असुर सभ्यता थी। यहां पर असुर पुरातात्विक स्थल की सबसे पहले खोज 1915 में शरत चंद्र रॉय ने बेलवादाग में की थी। बेलवादाग में बौद्ध विहार के अवशेष मिले है। यहां उपयोग किएगए ईट का आकार सांची स्तूप के ईट के जैसा है। बाद में भारतीय पुरातात्विक विभाग ने और भी बहुत स्थल की खोज की है,जो निम्नलिखित है
1. कुंजला- इसकी खोज भी शरत चंद्र रॉय ने की थी। यहां से मोटे कपड़े, लोहे के समान,मिट्टी के बर्तन प्राप्त हुए है।
2. कटहर टोली - यह कोटरी नदी तट में अवस्थित है।यहां से दिया घंटी के अवशेष प्राप्त हुए है।
3. सरिदकेल - यह सबसे बड़ा असुर स्थल है।
4. हांसा - सबसे बड़े आकार के ईट यहीं से प्राप्त हुई है।
5. खूँटी टोला - इस स्थल की खोज शरत चंद्र राय ने की थी।







              असुर जनजाति से सम्बन्धित तथ्य
       Important Facts Of Asur Tribes


1. पहला बच्चा का पुत्री होना समृद्धि का सूचक  मानते है।
2. असुर संस्कृति को मय-संस्कृति कहा जाता है।
3. नृत्य स्थल को अखड़ा कहा जाता है।
4. असुर समुदाय में कुंवारे लड़का/लड़की को केला वृक्ष लगाना निषेध है। गर्भवती महिलाओं का सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण देखना भी निषेध है।




असुर जनजाति पर वीडियो

Saturday, 8 May 2021

Jharkhand GK OBJECTIVE

  परिचय - पुराने जमाने में देवघर बैजनाथ मठ के रूप में जाना जाता था। देवघर को झारखंड की सांस्कृतिक राजधानी कहा जाता है।                  





                                   स्थापना

संथाल विद्रोह (1855-56) का मुख्य रूप से प्रसार तत्कालीन भागलपुर और बीरभूम जिले में हुआ था। संथाल विद्रोह ने अंग्रेजो के प्रशासनिक व्यवस्था को बहुत बड़ी चुनौती दे डाली थी। हालांकि अंग्रेजो ने इस विद्रोह का दमन कर दिया मगर उसे प्रशासनिक सुधार के लिए मजबूर कर दिया था। इसी को ध्यान में रखते हुए संथाल परगना जिला का निर्माण किया। भागलपुर और बीरभूम(देवघर पहले बीरभूम के अंतर्गतही आता था)के उन सारे क्षेत्रों को,जहां संथाल विद्रोह का ज्यादा प्रसार हुआ था, मिलाकर एक जिला बनाया जिसका नाम संथाल परगना रखा गया। सुरुआत में संथाल परगना के प्रशासनिक कार्य का संचालन भागलपुर से होता रहा।1983 में संथाल परगना जिला 4 भागो में विघटित होकर दुमका, देवघर,साहेबगंज और गोड्डा। इस तरह देवघर जिला का जन्म 1983 में हुआ। पहले यह जगह बैजनाथ मठ के नाम से जाना जाता था। 





अनुमंडल- देवघर जिला में दो ही अनुमंडल है।

1. देवघर
2. मधुपुर

लोकसभा क्षेत्र - देवघर जिला गोड्डा लोकसभा क्षेत्र में आता है।ये लोकसभा क्षेत्र अनारक्षित है।

विधान सभा क्षेत्र - देवघर जिला में 3 विधान सभा क्षेत्र है।
                            1.देवघर
                            2. मधुपुर
                            3. सारठ
                            


                                देवघर जिला के प्रखंड
                           Blocks Of Deoghar District
दुमका जिला में कुल 10 प्रखण्ड है।
1. देवघर
2. देवीपुर
3. मार्गोमुंडा
4. सारठ
5. सरवां
6. सोनरायथाड़ी
7. कौरों
8.पालोजोरी
9. मोहनपुर
10. मधुपुर

                          देवघर के दर्शनीय स्थल
                   Tourist Place Of Deoghar


1. नंदन पहाड़ - देवघर शहर में यह एक मुख्य दर्शनीय स्थल है। यहां पर भगवान शंकर के द्वारपाल नंदी महाराज का मंदिर है। नंदी महाराज की मंदिर होने के वजह से इस पहाड़ का नाम नंदन पहाड़ पड़ा। यहां विभिन्न देवी देवताओं का मंदिर समूह है। जब रावण को शिव के दरबार में नंदी ने घुसने नही दिया तब रावण ने बलप्रयोग करके नंदी महाराज को फेंक दिया था ,वो इसी पहाड़ पर गिरे थे तब से यहां नंदी मंदिर है। यहां पर जैन के 12वें तीर्थंकर वासुपुज्य का मंदिर अवस्थित है।

2. रिखियापीठ आश्रम - यह देवघर शहर से 8 KM की दूरी पर स्थित रिखिया नमक गांव में स्थित है।यह एक  योग आश्रम है। इसकी स्थापना विश्व प्रसिद्ध योग गुरु सत्यानंद सरस्वती ने 1989 में की थी।

3. सत्संग आश्रम - यह आश्रम देवघर शहर में अवस्थित है।इसका निर्माण ठाकुर अनुकूलचंद्र ने 1946 में किया था। यह स्थान ठाकुर अनुकूलचंद्र द्वारा चलाए गए सत्संग आंदोलन का मुख्यालय था। सत्संग आश्रम द्वारा 1969 में यही पे एक महाविद्यालय की स्थापना की गई जिसका नाम "अमर युद्ध संध्या महाविद्यालय" था।अभी यह कॉलेज,सत्संग कॉलेज के नाम से जाना जाता है। इस आश्रम ने दो आवासीय विद्यालय की स्थापना भी की है। "तपोवन विद्यालय" लडको के लिए और "वीनापाणी विद्यालय" लड़कियों के लिए। इस आश्रम में "मेमोरिया" नामक संग्रहालय भी है जिसमे ठाकुर अनुकूलचंद्र से संबंधित वस्तुओ और स्मृतियों को सुरक्षित रखा गया है। "दूतापति सत्संग चिकित्सालय" की स्थापना भी इसी आश्रम ने किया है,जहां मुफ्त चिकित्सा की व्यवस्था है। यह आश्रम  "आनंदबाजार" नामक सामुदायिक रसोई चलाता है जिसमे मुफ्त के लोगो को खाना खिलाया जाता है। इस आश्रम से 5 मासिक पत्रिका का प्रकाशन होता है। हिंदी में "सत्त्वति" बंगला में "आलोचना" उड़िया के "ऊर्जाना" अंग्रेजी में "लिगेट" और असमिया में "आगमवानी"। सत्संग आश्रम खुद अपने ट्रेडमार्क से हर्बल दवाओ का निर्माण करती है जहां इस दवाओ का निर्माण होता उसे "रशिशन मंदिर" नाम दिया गया है।



4. बालानंद आश्रम - देवघर शहर में वह आश्रम अवस्थित है।यह आश्रम प्रसिध्द संत बालानंद ब्रह्मचारी द्वारा बनाया गया। नौलखा मंदिर का निर्माण इसी आश्रम के अनुयायियों द्वारा बनाया गया था। देवघर की प्रसिद्ध रथ यात्रा इसी आश्रम से निकलती है।



5. तपोवन - यह एक पवित्र धार्मिक स्थल है जो देवघर शहर से 10 KM में अवस्थित है। यहां स्थितशिव मंदिर का नाम तपोनाथ मंदिर है।यहां पर महर्षि बाल्मीकि और बलनानंद ब्रह्मचारी ने तपस्या की थी। तपोवन एक पहाड़ है जहां दरार वाली चट्टाने पाई जाती है और दरारों के भीतर हनुमान जी के चित्र दिखाई देते। दरारे इतनी पतली है की वहां ब्रश या कोई वस्तु भी नही घुसाई जा सकती फिर यहां चित्र कैसे यह आश्चर्य की बात है।यहां पर एक जलकुंड है जिसका नाम सीताकुंड या सूक्तकुंड है।

6.वैद्यनाथ मंदिर झारखंड के देवघर जिले में अवस्थित है। यहां स्थित ज्योर्तिलिंग को कामना लिंग भी कहा जाता है। इस मंदिर का पुनरोद्धार गिद्धौर राजवंश के दसवें राजा पूरमल ने कराया था। यहां शिवलिंग की स्थापना रावण ने की थी इसलिए इसे "रावणेश्वर" महादेव कहते है। इस मन्दिर के परिसर में  और 21 बड़े मंदिर है। इस मंदिर के मुख्यद्वार के पास ही "बैजू मंदिर" है(बैजू के आदिवासी था जिसने भगवान शिव की भक्तिपूर्वक आराधना की थी)। सनातन परंपरा के अनुसार 12ज्योर्तिलिंग है जिसमे से यह मंदिर भी है,और सनातन परंपरा के अनुसार इसे कामना लिंग भी कहते है। साथ साथ इस मंदिर को "हृदय पीठ" और "चिता भूमि" भी कहा जाता है  क्योंकि सती की हृदय यहीं पर गिरी थी और उनका दाह संस्कार भी यही पर हुआ था। दुनिया का सबसे लंबा मेला श्रावणी मेला यही पर सावन महीने में लगता है,जब श्रद्धालु अजगेबीनाथ धाम (सुल्तानगंज) से जल लेकर बैद्यनाथ धाम आते है। महात्मा गांधी जब इस मंदिर में दर्शन करने आए थे तो इस मंदिर के बारे में अपनी पत्रिका "यंग इंडिया" में इस मंदिर के बारे में लिखते हुए यहां के पण्डो की तारीफ की थी  और कहा था कि यहां कोई छुवाछूत नही है। यह मंदिर नागर शैली में बनी है।


7. नौलखा मंदिर- यह मंदिर देवघर शहर में स्थित है। इस मंदिर की वास्तुकला बेलूर स्थित रामकृष्ण मंदिर से मिलती है। इस मंदिर को युगल मंदिर भी कहा जाता है क्योंकि यहां पर राधाकृष्ण की युगल मूर्ति है। जब चारुशिला देवी के पति अक्षय घोष और बेटे यतींद्र घोष की मृत्यु हो गई तो वो देवघर स्थित बालानंद आश्रम से जुड़ गई और उसने नौलखा मंदिर को बनाने के लिए धन का दान दिया फिर यह मंदिर बालानंद आश्रम के एक अनुयायी ने 1948 में बनवाया।इस मंदिर के निर्माण में 9 लाख रुपए खर्च होने के वजह से इसे नौलखा मंदिर कहा जाता है।

                           Trikut Parvat
                              त्रिकुट पहाड़
यह एक सुंदर सा धर्मिक स्थल सहित मनोरंजन स्थल है। यह देवघर शहर से 15 KM दूरी पर अवस्थित है। यह एक पर्वत श्रृंखला है जो तीन पहाड़ जिसका नाम ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं साथ ही दो छोटी छोटी पहाड़ी भी है जिसका नाम गणेश और कार्तिक है।इस पर्वत से मयूराक्षी नदी का उद्गम स्थल है। यहां झारखंड का सबसे बड़ा रोप वे बनाया गया है जिसके मदद से त्रिकुट पर्वत के शिखर तक पहुंचा जाता है। यह रोप वे भारत का सबसे लंबा उर्धवाधर (Vertical) रोप वे है। त्रिकुटाचल शिव मंदिर यहीं पर अवस्थित है। पहाड़ के शिखर मे "रावण का हेलीपेड" दर्शनीय स्थान है। शिवलिंग को कैलाश से लंका ले जाने के क्रम में रावण का वायुयान यहीं पर रुका था।

                           कर्णेश्वर धाम
                    Karneshvar Dham

यह एक 28 मंदिर का समूह जो देवघर जिला के कौरों प्रखंड में अवस्थित है। इसमें एक मुख्य मंदिर है जिसे कर्णेश्वर महादेव नाम से पुजा जाता है। इसी के परिसर में और 27 महादेव मंदिर है। इसका निर्माण अंगराज कर्ण ने महाभारत काल में कराया था । महाभारत काल में ये क्षेत्र अंग राज्य के अंतर्गत आता था और यह क्षेत्र अंगरज कर्ण के अधीन था। और इस मंदिर के कारण ही इस जगह का नाम कौरों पड़ा।
      

                       देवघर की सिंचाई परियोजना
              Irrigation Projects Of Jharkhand


1. पुनासी जलाशय सिंचाई परियोजना (Punasi Irrigation Project)- यह परियोजना देवघर जिले के पुनासी गांव में अजय नदी पर चलाया जा रहा है। यह परियोजना सातवी पंचवर्षीय योजना के तहत चलाई गई है। इससे लाभान्वित होने वाला जिला देवघर और दुमका है।

2. अजय बराज सिचाई परियोजनाः यह परियोजना भी देवघर जिला के सिकटिया गांव में अवस्थित है।यह बांध भी अजय नदी पे बनाया गया है। यह परियोजना पांचवी पंचवर्षीय योजना के तहत चलाई गई है। इस परियोजना से जामताडा और देवघर दोनो जिला लाभान्वित होती है।
















                        कमलकांत नारोने स्टेडियम
                      Kamalkant Narone Stadium

यह स्टेडियम देवघर में स्थापित है।यहां पर विभिन्न खेल प्रतियोगिता के साथ साथ सामाजिक कार्य का संपादन होता रहता है।

                           कुमैथा स्पोर्ट्स स्टेडियम
                    Kumaitha Sports Stadium

यह स्टेडियम देवघर में अवस्थित है।
 
                         देवघर के शिक्षण संस्थान
       Educational institution Of Jharkhand

1. देवघर कॉलेज देवघर(Deoghar College,Deoghar)
2. रमादेवी बाजला महिला महाविद्यालय, देवघर (Ramadevi Bajla Mahila College,Deoghar)
3.  डॉ जाकिर हुसैन इंस्टीट्यूट, देवघर(Dr Zakir Husain Institute,Deoghar)
4. मधुपुर कॉलेज,मधुपुर (Madhupur College,Madhupur)
5. देवसंघ इंस्टीट्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज एंड एजुकेशनल रिसर्च, देवघर(Dev Sangh Institute Of Professional Studies & Educational Research,Deoghar)
6. अमर्युति सत्संग कॉलेज, देवघर(Amaryuti Satsang College, Doghar)
7. डॉ जगन्नाथ मिश्रा कॉलेज,देवघर(Dr Jagannath Mishra College,Deoghar)
8. बालानंद संस्कृत महाविद्यालय, देवघर (Balanand Sanskrit College Deoghar)
9. डॉ जे एन मिश्रा महाविद्यालय, जसीडीह (Dr JN Mishra College,Jasidih)
10. बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, देवघर (Birla Institute Of Technology,Deoghar)- यह संस्थान BIT,MESRA का ही एक उपभाग है।इसकी स्थापना 2007 में जसीडीह में की गई है।
11. बैद्यनाथ कमल कुमारी संस्कृत महाविद्यालय देवघर (Baidhnath Kamal Kumari Sanskrit College Deoghar)
12. हिंदी विद्यापीठ (Hindi Vidyapeeth)- स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान जब विदेशी वस्तुओ का बहिष्कार हो रहा था। उस समय विदेशी भाषाओं का भी बहिष्कार किया गया।इसी का उपज है हिंदी विद्यापीठ देवघर।इसकी स्थापना 1929 में गोवर्धन महाविद्यालय के नाम से की गई थी। प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद इस महाविद्यालय के आदि कुलपति थे। इस विद्यापीठ का मुख्य आरोपी उद्देश्य हिंदी भाषा का प्रसार प्रचार करना है।इस विद्यापीठ के संस्थापक पंडित  झा को माना जाता है। 20 मई 1934 में महात्मा गांधी इस संस्थान में आए थे।
13. रामकृष्ण मिशन विद्यापीठ (Ramkriahna Mission Vidyapeeth)- यह देवघर शहर से कुछ दूरी पर अवस्थित आवासीय विद्यालय है। इसकी स्थापना 1922 में हुई थी।ये रामकृष्ण मिशन की सबसे पुरानी शिक्षण संस्थान है। यहां 10+2 तक की पढ़ाई होती है।

14. बाबा वैद्यनाथ संस्कृत महाविद्यालय, देवघर (Baba Baidyanath Sanskrit University, Deoghar)- झारखंड विधान सभा में 2019 में " झारखंड राज्य विश्वविद्यालय(संशोधन) विधेयक 2019" पारित हुआ इसके तहत झारखंड के देवघर में "बाबा वैद्यनाथ संस्कृत विश्वविद्यालय" की स्थापना की गई है।यह झारखंड का पहला संस्कृत विश्वविद्यालय है। झारखंड में स्थित सारे संस्कृत महाविद्यालय, स्वदेशी चिकित्सा महाविद्यालय और आयुर्वेदिक महाविद्यालय सभी विनोबा भावे विश्वविद्यालय के अंतर्गत आते थे। अब ये सारे बाबा वैद्यनाथ विश्वविद्यालय के अंतर्गत कार्यरत है।

15. रोहिणी गांव - यह गांव  ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। यह गांव अजय नदी के तट पर अवस्थित है। इसी गांव में झारखंड मे सबसे पहले 1857 ई का सिपाही विद्रोह शुरू हुआ था।इसी गांव में स्थल सेना के 32वी रेजिमेंट का मुख्यालय था।
 ये गांव गरमपंथी दौर में झारखंड क्षेत्र का केंद्रबिंदु था। रोहिणी गांव में ही राजनारायण बासु भागलपुर के वकील तारनी प्रसाद के घर में किराए के मकान में रहते थे। जिस वजह से यहां पर क्रांतिकारियों की हमेशा गुप्त बैठकें होती थी। बरिंद्रो घोष का पूरा बचपन यही पर बीता उसने देवघर के आर मित्रा स्कूल से पढ़ाई किया था। अरबिंदो घोष भी यहां समय समय पर आया करते थे। अरबिंदो घोष का नाम "अलीपुर षड्यंत्र केस(1908, कलकत्ता)" में संलिप्त होने के कारण ब्रिटिश सरकार ने रोहिणी गांव में छापा मारा था और हथियार गोला बारूद बरामद किए थे, जो कुवां में छुपा कर रखा गया था। रोहिणी गांव के एक युवक ने ही अरबिंदो घोष के खिलाफ गवाही दी थी जिससे उसकी सजा हुईं थी।










                    देवघर जिला के महत्वपूर्ण तथ्य
           Important Facts Of Deoghar District
1. जसीडीह में सॉफ्टवेयर टेक्निकल पार्क है।
2. देवीपुर में प्लास्टिक पार्क अवस्थित है।
3. मधुपुर के निकट बाकूलिया जलप्रपात अवस्थित है।

नदी के किनारे बसे शहर

City  River Country Adelaide Torrens Australia Al-Cairo Nile Egypt Alexandria Nile Egypt Amsterdam Amsel Netherlands Ankara Kazil Turkey Bag...

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